सरकार के इस कदम से सस्ती हो जाएगी बिजली..! जाने कितना होगा काम – Electricity Bill Update

Electricity Bill Update: सरकार ने ज़्यादातर कोयला आधारित बिजली संयंत्रों के लिए सल्फर उत्सर्जन नियमों में ढील दे दी है। अधिकारियों ने आज यानी 13 जुलाई 2025 को बताया है कि इस कदम से बिजली की लागत में 25 पैसे लेकर 30 पैसे प्रति यूनिट तक की कमी आने की संभावना है।

2015 के निर्देश में संशोधन किया गया

सरकार की तरफ से जारी अधिसूचना कहा गया है कि उसने अपने 2015 के निर्देश में संशोधन किया है। इसके तहत फ्लू-गैस डिसल्फराइजेशन (FGD) सिस्टम लगाना अनिवार्य था। ये सिस्टम बिजली संयंत्रों से निकलने वाली गैसों से सल्फर कम करने के लिए डिज़ाइन किए गए हैं। पीटीआई के अनुसार, अब यह आदेश केवल दस लाख से अधिक आबादी वाले शहरों के 10 किलोमीटर के दायरे में स्थित संयंत्रों पर लागू होगा।

इन बातों का रखा जाएगा ध्यान

गंभीर रूप से प्रदूषित क्षेत्रों शहरों में स्थित पॉवर स्टोशनों का केस बाय केस मूल्यांकन किया जाएगा। हालांकि, लगभग 79 प्रतिशत बिजलीघर, जो भारत की ताप विद्युत क्षमता का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, अब अनिवार्य FGD स्थापना से मुक्त हैं।

निर्णय व्यापक एनालेसिस के बाद लिया गया

यह निर्णय केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) द्वारा एक व्यापक एनालेसिस के बाद लिया गया है। इसमें पता चला कि मौजूदा सल्फर नियंत्रण उपायों के संचालन से वास्तव में कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में वृद्धि हुई है। यह नया ढांचा व्यापक चर्चा और कई स्वतंत्र अध्ययनों के बाद विकसित किया गया था। पीटीआई के अनुसार अधिकारियों ने कहा है कि इससे शहरी आबादी से निकटता और प्रयुक्त कोयले में सल्फर की मात्रा के आधार पर डिफरेंशिएट कंप्लायंस सुनिश्चित होगा।

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यह नया ढांचा व्यापक विचार-विमर्श और कई स्वतंत्र अध्ययनों के बाद विकसित किया गया है। यह निर्णय आईआईटी दिल्ली, सीएसआईआर-नीरी और राष्ट्रीय उन्नत अध्ययन संस्थान (एनआईएएस) द्वारा किए गए कई अध्ययनों के बाद लिया गया है। इनमें पाया गया है कि देश के अधिकांश हिस्सों में परिवेशी सल्फर डाइऑक्साइड का स्तर एनएएक्यूएस के मानकों के अंदर है। विभिन्न शहरों में आंकलन से पता चला कि सल्फर ऑक्साइड का स्तर 3 से 20 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर के बीच है, जो कि NAAQS की 80 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर की सीमा से काफी नीचे है।

भारतीय कोयले में सल्फर की मात्रा कम

भारतीय कोयले में आमतौर पर सल्फर की मात्रा कम होती है, जो आमतौर पर 0.5 प्रतिशत से भी कम होती है। यह अनुकूल मौसम संबंधी परिस्थितियों के साथ-साथ उच्च स्टैक ऊंचाई SO2 के फैलाव को करती है।

एनआईएएस अध्ययन ने विशेष रूप से चेतावनी दी है कि देश भर में एफजेड की रेट्रोफिटिंग से 2025 और 2030 के बीच अनुमानत 69 मिलियन टन अतिरिक्त CO2 उत्सर्जन हो सकता है। यह वृद्धि एफजीडी संचालन के लिए आवश्यक चूना पत्थर खनन, परिवहन और बिजली की खपत में वृद्धि के कारण होगी।

जानें कितनी सस्ती हो सकती है बिजली

इंडस्ट्री अधिकारियों का अनुमान है कि मानदंडों में ढील दिए जाने से बिजली की लागत में 25-30 पैसे प्रति यूनिट की कमी आएगी। इसका लाभ अंततः उपभोक्ताओं को मिलेगा। इससे राज्य डिस्कॉम को टैरिफ को नियंत्रित करने में मदद मिलेगी और सरकारों पर सब्सिडी का बोझ कम होगा।

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अनिवार्य एफजीडी रेट्रोफिटिंग के लिए पिछला अनुमान 2.5 लाख करोड़ रुपये या 1.2 करोड़ रुपये प्रति मेगावाट से अधिक था। इसमें प्रति यूनिट 45 दिनों तक की इंस्टॉलेशन की समयसीमा मानी गई थी। कई बिजली उत्पादकों ने चिंता व्यक्त की थी कि इससे न केवल लागत बढ़ेगी, बल्कि ग्रिड स्थिरता भी खतरे में पड़ जाएगी, खास करके व्यस्त मौसम के दौरान।

पीटीआई के अनुसार सरकार के इस फैसले का स्वागत करते हुए, उद्योग के अधिकारियों ने कहा, “यह एक तर्कसंगत, विज्ञान-आधारित कदम है जो अनावश्यक लागतों से बचाता है।”

इन निष्कर्षों सहित एक हलफनामा शीघ्र ही एमसी मेहता बनाम यूनियन ऑफ इंडिया मामले में सर्वोच्च न्यायालय में पेश किया जाएगा, जहां एफजीडी प्रवर्तन समय-सीमा न्यायिक जांच के अधीन है।

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